जितना दिया सरकार ने, उतनी मेरी औकात नहीं,
यह तो करम है मेरे श्याम का, वरना मुझमें ऐसी कोई बात नहीं
कोई सलीका है आरज़ू का, ना बंदगी मेरी बंदगी है,
यह सब तुम्हारा करम है आका की बात अब तक बनी हुई है
कितने परवाने जल गए, राज़ यह पाने के लिए
की शम्मा जलने के लिए है या जलाने के लिए
राहों में चलते चलते, पूछा पैर के घावों ने
बस्ती कितनी दूर बसा ली, दिल में बसने वालो ने
ग़म मेरे साथ बड़ी दूर तक गए,
पर जब पायी ना मुझ में थकान
तो वोह खुद थक गए
तेरी महफ़िल में सब बोसे-ले-जाम के
और हम यूँ ही रहे किश्ता-लब पैग़ाम के
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